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हिंदी भी बनेगी जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा

मोदी सरकार ने जम्मू- कश्मीर के लोगों की वर्षों पुरानी मांग पूरी की। लोकसभा ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक-2020 को मंजूरी प्रदान कर दी जिसमें डोगरी, कश्मीरी और हिंदी को जम्मू- कश्मीर की आधिकारिक भाषा का दर्जा देने का प्रावधान है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पारित होने को जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिन बताया।

 

मोदी सरकार जम्मू- कश्मीर के लोगों की वर्षों पुरानी मांग पूरी करने जा रही है। डोगरी, कश्मीरी और हिंदी को भी जम्मू- कश्मीर की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रावधान करने वाली जम्मू एवं कश्‍मीर आधिकारिक भाषा विधेयक, 2020 को लोक सभा ने मंजूरी दे दी है।  इसके मुताबिक पहले से ही आधिकारिक भाषा का दर्जा पाए हुए उर्दू और अंग्रेजी के साथ ही अब डोगरी, कश्मीरी एवं हिंदी भी वहाँ की आधिकारिक भाषा बनेगी।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक के पारित होने को जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन करार दिया है। उन्होंने कहा कि “इस ऐतिहासिक बिल से जम्मू- कश्मीर के लोगों का लंबे समय से प्रतीक्षित सपना सच हो गया है। गृह मंत्री ने ट्वीट करके कहा कि “यह बिल जम्मू-कश्मीर की संस्कृति को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कटिबद्धता को दर्शता है। इसके लिए उनका आभार व्यक्त करता हूँ। साथ ही मैं जम्मू-कश्मीर के बहनों और भाइयों को विश्वास दिलाता हूँ कि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के गौरव को वापस लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।” गृह मंत्री ने ये भी कहा कि इस बिल से जम्मू- कश्मीर कला, संस्कृति तथा भाषा अकैडमी जैसे अन्य वर्तमान संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ किया जाएगा।

जम्मू और कश्मीर में मौजूदा आधिकारिक भाषाओं की स्थिति

साल 1957 से लेकर 31 अक्टूबर, 2019 तक, जम्मू और कश्मीर में दो आधिकारिक भाषाएँ थीं। उर्दू को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा प्राप्त था और अंग्रेजी को आधिकारिक व्यवहार के लिए प्रयोग किया जाना था I अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा, विधिक और विधायी क्षेत्रों में इसके प्रयोग के कारण ज़ारी रखा गया था I

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, वर्तमान जम्मू और कश्मीर संघ शासित प्रदेश की कुल जनसंख्या करीब सवा करोड़ थी। हालांकि वर्तमान जम्मू और कश्मीर संघ शासित प्रदेश में उर्दू भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या सिर्फ़ 19,112 थी, यानी जनसंख्या का सिर्फ़ 0.16 फ़ीसदी I अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या तो और कम, यानी आबादी का सिर्फ 0.1 फ़ीसदी थी। यह दिलचस्प तथ्य है कि पिछले सात दशकों में जम्मू और कश्मीर में स्थापित आधिकारिक भाषाओं को बोलने वालों की संख्या कुल जनसंख्या का एक फ़ीसदी भी नहीं थी I  यहां तक कि कश्मीरी भाषा भी आधिकारिक भाषाओं की सूची में नहीं शामिल थी। जम्मू और कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक, 2020 इसी असंतुलन को दूर करने का एक प्रयास है।

प्रस्तावित आधिकारिक भाषाएँ बोलने वालों की संख्या 

कश्मीरी     – 53.26%
डोगरी     – 20.64%
उर्दू             – 0.16%
हिंदी       – 2.30%
अंग्रेज़ी     – 0.01%

कुल             – 76.37%

संसद से विधेयक की मंजूरी की आवश्यकता 

जम्‍मू एवं कश्‍मीर पुनर्गठन क़ानून, 2019 की धारा 47 में यह प्रावधान है कि विधानसभा, विधि के द्वारा जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र में प्रयुक्‍त भाषाओं में से किसी एक या एक से अधिक भाषाओं को अथवा हिंदी को जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र के सभी अथवा किसी सरकारी प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली राजभाषा अथवा भाषाओं के रूप में स्‍वीकार करेगी। इस समय जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र का विधानमंडल मौजूद नहीं है।  जम्‍मू एवं कश्‍मीर पुनर्गठन क़ानून, 2019 की धारा 73 के अनुसार जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र के विधानमंडल की शक्तियां संसद में निहित है। ऐसे में जम्मू एवं कश्‍मीर आधिकारिक भाषा विधेयक, 2020 को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया गया । यह विधेयक लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया है । अब इस पर राज्य सभा में विचार होगा।

जम्मू- कश्मीर की प्रधान भाषाओं का संक्षिप्त विवरण

1. कश्मीरी  (53.26%) 

केन्‍द्रीय भारतीय भाषा संस्‍थान, मैसूर ने यह सूचित किया है कि कश्मीरी, कश्मीर क्षेत्र की भाषा है। यह भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भी है और इसे संवैधानिक दर्जा प्राप्‍त है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुल 67,97,587 कश्‍मीरी बोलने वाले लोग हैं, जिनमें से कश्‍मीरी बोलने वाले 64,86,219 (जनसंख्या का 53.26%) लोग वहां के मूल निवासी हैं, जो जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र में रहते हैं।

2. डोगरी (20.64%) 

डोगरी भाषा को भी भारत के संविधान की आठवीं अनसूची में वर्ष 2004 में शामिल किया गया था I केन्‍द्रीय भारतीय भाषा संस्‍थान ने यह भी सूचित किया है कि डोगरी भाषा प्रमुख रूप से जम्‍मू क्षेत्र में बोली जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, डोगरी भारत में 25,96,767 लोगों की मातृभाषा है, जिनमें से 25,13,712 (जनसंख्या का 20.64%)  लोग जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र में रहते हैं।

3. उर्दू ( 0.16% )

वर्ष 2011 की जनगणना में वर्तमान जम्मू और कश्मीर संघ शासित प्रदेश में उर्दू भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 19112 (जनसंख्या का 0.16 %)  है I चूंकि उर्दू पूर्ववर्ती जम्‍मू एवं कश्‍मीर राज्‍य की राजभाषा रही है, इसलिए इसे प्रस्‍तावित जम्‍मू एवं कश्‍मीर राजभाषा विधेयक, 2020 में एक आधिकरिक भाषा के रूप में रखा जा रहा है। उर्दू भाषा भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है।

4. हिंदी ( 2.30% ) 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, वर्तमान जम्मू और कश्मीर संघ शासित प्रदेश में हिंदी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 279684 (जनसंख्या का 2.30 %) है I अनुच्‍छेद 343 (1) के अनुसार, भारत संघ की राजभाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी। चूंकि भारत का संपूर्ण संविधान अब जम्‍मू एवं कश्‍मीर संघ राज्‍य क्षेत्र में लागू है, इसलिए हिंदी को प्रस्‍तावित जम्‍मू एवं कश्‍मीर राजभाषा विधेयक, 2020 में शामिल किया जाना आवश्‍यक है।

5. अंग्रेजी ( 0.01% ) 

भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 348 (1) के अनुसार, उच्‍चतम न्‍यायालय, उच्‍च न्‍यायालय, संसद में प्रस्‍तुत किए जाने वाले विधेयकों आदि में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होती हैं, इसलिए अंग्रेजी भाषा को प्रस्‍तावित विधेयक में एक भाषा के रूप में शामिल किया जाना आवश्‍यक है। ऐसे में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को इस संघ राज्‍य क्षेत्र में उन प्रशासनिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए जारी रखा जा सकता है जिनके लिए उसे इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले प्रयोग किया जा रहा था।

क्षेत्रीय भाषाओं  के विकास का प्रावधान 

जम्मू और कश्मीर में पांच आधिकरिक भाषाओं के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए भारतीय भाषाओं के केन्द्रीय संस्थान, मैसूर से जानकारी प्राप्त की गयी I प्राप्त जानकारी के आधार पर जम्मू-कश्मीर में आधिकरिक भाषाओं के साथ-साथ, अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ, को बढ़ावा देने और उनके विकास के लिए वर्तमान संस्थागत ढांचे जैसे जम्मू और कश्मीर कला, संस्कृति तथा भाषाओँ की अकादमी, को और अधिक सुदृढ़ करने और उनके विकास के लिए विशेष कदम उठाने का प्रावधान सम्मिलित किया गया हैI एक तरह से  इस विधेयक के जरिए अतीत की तरह क्षेत्र की भाषाओं को सम्मान मिलता रहेगा तो साथ ही स्थानीय क्षेत्रीय भाषाओं के उत्थान के लिए अहम कदम भी उठाए जा सकेंगे।

सोर्स डी डी न्यूज

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