हिजाब विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पगड़ी हिजाब के बराबर नहीं है,
हिजाब विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पगड़ी हिजाब के बराबर नहीं है, यह धार्मिक नहीं है। इसकी तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ हिजाब मामले में दिए गए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। की। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च के अपने फैसले में राज्य के स्कूलों और कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को बरकरार रखा था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से राजीव धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में एक जज थे जो तिलक लगाते थे और एक पगड़ी पहनते थे। कोर्ट नंबर-2 में एक तस्वीर लगी है जिसमें जज को पगड़ी पहने दिखाया गया है। सवाल यह है कि क्या महिलाओं को ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए जो सरकार ने तय किया है। और क्या हिजाब इस्लाम की अनन्य धार्मिक प्रथा है। यूनिफॉर्म निर्धारित करने की शक्ति सरकार को नहीं दी गई थी और यदि कोई व्यक्ति यूनिफॉर्म पर अतिरिक्त चीज पहनता है तो यह यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं होगा। इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि पगड़ी हिजाब के बराबर नहीं है यह धार्मिक नहीं है, इसकी तुलना हिजाब से नहीं की की जा सकती। यह शाही राज्यों में पहनी जाती थी, मेरे दादा जी कानून की प्रेक्टिस करते हुए उसे पहनते थे। इसकी तुलना हिजाब से मत कीजिए। स्कार्फ पहनना एक आवश्यक प्रथा हो सकती है या नहीं, सवाल यह हो सकता है कि क्या सरकार महिलाओं के ड्रेस कोड को विनियमित कर सकती है।
कर्नाटक हाइकोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि क्लासरूम में हिजाब पहनने की अनुमति देने से “मुसलमान महिलाओं की मुक्ति में बाधा पैदा होगी” और ऐसा करना संविधान की ‘सकारात्मक सेकुलरिज्म’ की भावना के भी प्रतिकूल होगा.
अब कर्नाटक हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए, छात्राओं की ओर से एक स्पेशल लीव पेटिशन दायर की गई है.
इससे पहले कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम के अनुसार अनिवार्य नहीं है.
हाइकोर्ट की फुल बेंच ने अपने 129 पन्ने के फ़ैसले में कुरआन की आयतों और कई इस्लामी ग्रंथों का हवाला दिया है.
इन सवालों के आधार पर किया गया फैसला
अदालत ने चार सवालों का जवाब देते हुए अपना निर्णय दिया है. पहला सवाल, हिजाब या सिर ढकना इस्लाम की दृष्टि से अनिवार्य है या नहीं, और इसे आर्टिकल 25 के तहत संविधान की सुरक्षा मिली हुई है या नहीं. अदालत ने माना है कि हिजाब इस्लाम के मुताबिक अनिवार्य नहीं है.
दूसरा सवाल, क्या यूनिफॉर्म का नियम याचिकाकर्ताओं के उस मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है जो उन्हें संविधान के आर्टिकल 19 और आर्टिकल 21 से मिलता है.
अदालत ने कहा कि स्कूल यूनिफॉर्म लोगों की स्वतंत्रता की वाजिब सीमा तय करता है जो संविधान के तहत मान्य है और छात्रों को इस पर एतराज़ नहीं करना चाहिए.
तीसरा सवाल था कि क्या राज्य सरकार का 5 फ़रवरी का फ़ैसला मनमाना था, क्या इस फ़ैसले से संविधान के आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन हुआ है, बेंच ने माना कि सरकार का निर्णय उचित था.
चौथा सवाल था कि क्या उन टीचरों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने छात्राओं को कॉलेज में हिजाब पहनने से रोका था, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ऐसी कोई माँग नहीं की थी.