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जिया उल हक हत्याकांड में राजा भैया बरी

  • जिया उल हक हत्याकांड मामले में हाई कोर्ट ने राजा भैया को राहत दी है
  • केस की जांच को जारी रखने के सीबीआई कोर्ट के फैसले को खारिज किया
  • 2013 का यह मामला कुंडा का है, जिसमें राजा भैया पर हत्या का आरोप लगा
  • तत्कालीन अखिलेश सरकार पर उठे थे सवाल, राजा भैया ने दे दिया था इस्तीफा
प्रतापगढ़ः उत्तर प्रदेश के कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को बीते दिनों हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दी। 9 साल पुराने हत्या के एक मामले में राजा भैया नामजद आरोपी थे। उनके खिलाफ जांच करते हुए सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट साल 2014 में ही लगा चुकी थी और राजा भैया को क्लिन चिट भी दे दिया था लेकिन सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने इस क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और जांच दोबारा करने के लिए आदेश दे दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई की इस स्पेशल अदालत के आदेश को पलट दिया और कहा कि मामले में जांच की जरूरत नहीं है। राजा भैया को ‘फंसाने’ वाला हत्या का यह मामला साल 2013 का है, जिसके बाद तत्कालीन अखिलेश सरकार भी हिल गई थी। खुद अखिलेश और उनके मंत्री आजम खान को पीड़ित परिवार के घर पहुंचना पड़ा था। क्या है यह मामला, आपको समझाते हैंः

चुनावी रंजिश में हत्या

ये वारदात उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा इलाके की है। साल 2013 की 2 मार्च को कुंडा सर्किल के हथिगवा इलाके में बलीपुर गांव के प्रधान नन्हे यादव की चुनावी रंजिश में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना से आक्रोशित प्रधान के परिजन ने आरोपी कामता पाल के घर पर हमला बोल दिया। उन्होंने कामता के घर में आग लगा दी। आक्रोशित लोग

मामले के एक अन्य आरोपी संजय सिंह उर्फ गुड्डू के घर जा रहे थे। उस समय सूचना पाकर तत्काली कुंडा सीओ जिया उल हक मौके पर पहुंच गए।

सीओ को पीट-पीटकर मार दी गोली

जिया उल हक नाराज लोगों को आगे बढ़ने से रोकने लगे। तभी मृत प्रधान के भाई सुरेश यादव ने बंदूक की बट से उनके सिर पर वार किया और उन्हें गिरा दिया। इस दौरान बंदूक की छीना-झपटी हुई और गोली लगने से सुरेश यादव की भी मौत हो गई। दो मौतों से आगबबूला हुए लोगों ने सीओ को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। बाद में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। भीड़ द्वारा सीओ की हत्या ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। कानून व्यवस्था के मुद्दे पर विपक्ष ने तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार को घेरना शुरू कर दिया।

मृत सीओ की पत्नी परवीन आजाद ने हथिगवा थाने में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और उनके करीबियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कराया। राजा भैया तब अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। इस आरोप से के बाद जब उन पर दबाव बना तो उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और मामले की सीबीआई की जांच की मांग कर दी। हालांकि, बाद में जब सीबीआई ने राजा भैया को मामले में क्लिन चिट दे दिया तो उनकी अखिलेश सरकार में फिर वापसी हो गई।

परिजन को सांत्वना देने पहुंचे थे अखिलेश

उधर देवरिया में सीओ के घर पर उनके परिजन धरने पर बैठ गए। मामला इतना चर्चित हो गया कि खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सीओ के घर जाकर परिजन को सांत्वना देनी पड़ी। कैबिनेट मंत्री आजम खान भी तब देवरिया पहुंचे थे। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई और एक साल में जांच करके सीबीआई ने राजा भैया के अलावा मामले के अन्य आरोपी गुलशन यादव, हरिओम, रोहित, संजय को क्लीन चिट दे दी। इसके बाद सीओ की पत्नी परवीन आजाद ने इसके खिलाफ सीबीआई कोर्ट में अर्जी डाल दी। कोर्ट ने रिपोर्ट खारिज कर दी और जांच फिर शुरू हो गई।

सपा ने गुलशन यादव को बनाया प्रत्याशी

सपा सरकार में हुए इस हत्याकांड ने अखिलेश यादव की जमकर किरकिरी कराई थी। हालिया विधानसभा चुनाव में प्रतापगढ़ में सपा ने राजा भैया से न सिर्फ दूरी बना ली थी बल्कि उनके खिलाफ प्रत्याशी भी उतारा था। यह प्रत्याशी कोई और नहीं बल्कि जिया उल हत्याकांड में आरोपी और कभी राजा भैया के ही करीबी रहे गुलशन यादव थे। हालांकि, गुलशन चुनाव हार गए और राजा भैया की जीत हुई।